वाक्यांशों को उचित क्रम में सजाना
Direction: निम्नलिखित प्रश्नों में दिए गए अनुच्छेदों के पहले और अंतिम वाक्यों में क्रमशः (1) और (6) की संज्ञा दी गई है। इसके मध्यवर्ती वाक्यों को चार भागों में बांटकर (य),(र),(ल),(व) की संज्ञा दी गई है। ये चारों वाक्य व्यवस्थित क्रम में नहीं है। इन्हें ध्यान से पढ़कर दिए गए विकल्पों में से उचित कदम चुनिए, जिससे सही अनुच्छेद का निर्माण हो।
- (1) फिर से मैं सोचने लगा-अतीत क्या चला ही गया
(य) मैं किसी तरह विश्वास नहीं कर सका कि अतीत एकदम उठ गया है।
(र) अपने पीछे क्या हम एक विशाल शून्य मरुभूमि छोड़ते जा रहे हैं ?
(ल) कहां जाएगा वह ?
(व) आज जो कुछ हम कर रहे हैं, कल क्या यह सब लोप हो जाएगा ?
(6) मुझे शिप्रा की लोल तरंगों पर बैठे कालिदास स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं, अतीत कहीं गया नहीं है, वह मेरी रग-रग में सुप्त है।
-
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NA
सही विकल्प: C
(1) फिर से मैं सोचने लगा-अतीत क्या चला ही गया (र) अपने पीछे क्या हम एक विशाल शून्य मरुभूमि छोड़ते जा रहे हैं ? (व) आज जो कुछ हम कर रहे हैं, कल क्या यह सब लोप हो जाएगा ? (ल) कहां जाएगा वह ? (य) मैं किसी तरह विश्वास नहीं कर सका कि अतीत एकदम उठ गया है। (6) मुझे शिप्रा की लोल तरंगों पर बैठे कालिदास स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं, अतीत कहीं गया नहीं है, वह मेरी रग-रग में सुप्त है।
- (1) जिस प्रकार
(य) दहकना है उसी प्रकार
(र) उसके स्वभाव का
(ल) मनुष्य का धर्म
(व) अग्नि का धर्म
(6) पर्याय होना चाहिए
-
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NA
सही विकल्प: A
(1) जिस प्रकार (व) अग्नि का धर्म (य) दहकना है उसी प्रकार (ल) मनुष्य का धर्म (र) उसके स्वभाव का (6) पर्याय होना चाहिए
- (1) क्रोध मनुष्य के शरीर को भयानक कर देता है।
(य) क्रोध न तो मनुष्यता का चिह्न है और न स्वभाव के सरल होने का ही।
(र) शब्द को कुत्सित कर देता है, चेहरे को आग के समान लाल कर देता है। ,आंखों को विकराल कर देता है।
(ल) यह निरोग की अपेक्षा रोगी को, युवक की अपेक्षा वृद्ध को और भाग्यवान की अपेक्षा अभागे को अधिक आता है।
(व) वह भीरुता अथवा मन की क्षुद्रता का चिन्ह है।
(6) जो क्षुद्र है, उन्हीं को क्रोध शोभा देता है।
-
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NA
सही विकल्प: C
(1) क्रोध मनुष्य के शरीर को भयानक कर देता है। (र) शब्द को कुत्सित कर देता है, चेहरे को आग के समान लाल कर देता है। ,आंखों को विकराल कर देता है। (य) क्रोध न तो मनुष्यता का चिह्न है और न स्वभाव के सरल होने का ही। (व) वह भीरुता अथवा मन की क्षुद्रता का चिन्ह है। (ल) यह निरोग की अपेक्षा रोगी को, युवक की अपेक्षा वृद्ध को और भाग्यवान की अपेक्षा अभागे को अधिक आता है। (6) जो क्षुद्र है, उन्हीं को क्रोध शोभा देता है।
- (1) ईर्ष्या का काम जाना है मगर सबसे पहले वह उसी को जलाती है जिसके हृदय में उसका जन्म होता है।
(य) श्रोता मिलते ही उनका ग्रामोफोन बजने लगता है।
(र) जो बराबर इस फिक्र में लगे रहते हैं कि कहाँ अपने दिल का गुब्बार निकालने का मौका मिले।
(ल) वे बड़ी ही होशियारी के साथ एक-एक काण्ड इस ढंग से सुनते हैं मानो विश्व-कल्याण को छोड़कर उनका कोई ध्येय नहीं है।
(व) बहुत से लोग ऐसे हैं जो ईर्ष्या और द्वेष की साकार मूर्ति हैं।
(6) समझने का प्रयत्न कीजिए कि जबसे उन्होने इस सुकर्म का आरंभ किया है, तब से वे अपने क्षेत्र में आगे बढ़े हैं या पीछे हटे हैं।
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NA
सही विकल्प: C
(1) ईर्ष्या का काम जाना है मगर सबसे पहले वह उसी को जलाती है जिसके हृदय में उसका जन्म होता है। (व) बहुत से लोग ऐसे हैं जो ईर्ष्या और द्वेष की साकार मूर्ति हैं। (र) जो बराबर इस फिक्र में लगे रहते हैं कि कहाँ अपने दिल का गुब्बार निकालने का मौका मिले। (य) श्रोता मिलते ही उनका ग्रामोफोन बजने लगता है। (ल) वे बड़ी ही होशियारी के साथ एक-एक काण्ड इस ढंग से सुनते हैं मानो विश्व-कल्याण को छोड़कर उनका कोई ध्येय नहीं है। (6) समझने का प्रयत्न कीजिए कि जबसे उन्होने इस सुकर्म का आरंभ किया है, तब से वे अपने क्षेत्र में आगे बढ़े हैं या पीछे हटे हैं।
- (1) मार्क्सवादी और फ्रायडियन दृष्टिकोण में अर्थ और काम का आधुनिक रूपांतर है।
(य) ऐसा कैसे कहा जा सकता है जबकि हमारे यहाँ चार पुरुषार्थों में अर्थ और काम भी परिगणित था।
(र) अर्थ और काम का प्रतीक था शरीर।
(ल) यहां तक कि अर्थ को प्रथम स्थान देकर उसे शेष पुरुषार्थ का आधार स्तंभ निर्दिष्ट कर दिया गया था।
(व) क्या अतीत का साहित्य और साहित्यकार अर्थ और काम से अनभिज्ञ था।
(6) कला गुरु कालिदास ने कहा है - 'शरीरमाद्यम् खलु धर्मसाधनम्।
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NA
सही विकल्प: D
(1) मार्क्सवादी और फ्रायडियन दृष्टिकोण में अर्थ और काम का आधुनिक रूपांतर है। (व) क्या अतीत का साहित्य और साहित्यकार अर्थ और काम से अनभिज्ञ था। (य) ऐसा कैसे कहा जा सकता है जबकि हमारे यहाँ चार पुरुषार्थों में अर्थ और काम भी परिगणित था। (ल) यहां तक कि अर्थ को प्रथम स्थान देकर उसे शेष पुरुषार्थ का आधार स्तंभ निर्दिष्ट कर दिया गया था। (र) अर्थ और काम का प्रतीक था शरीर। (6) कला गुरु कालिदास ने कहा है - 'शरीरमाद्यम् खलु धर्मसाधनम्।