वैदिक संस्कृति
- 'धर्म 'तथा 'ऋत' भारत की प्राचीन वैदिक सभ्यता के एक केंद्रीय विचार को चित्रित करते हैं ।इस संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
1.धर्म व्यक्ति के दायित्व एवं स्वयं तथा दूसरों के प्रति व्यक्तिगत कर्त्तव्यों की संकल्पना थी।
2.ऋत मूलभूत नैतिक विधान था जो सृष्टि और उसमे अंतर्निहित सारे तत्वों के क्रियाकलापों को संचालित करता था।
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सही विकल्प: C
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- निम्नलिखित को सही सुमेलित करें
सूची 1 सूची 2 A.होतृ 1.ऋग्वेद का पाठ करने वाला B.उदगाता 2.सामवेद का पाठ करने वाला C.अध्वर्यु 3.यजुर्वेद का पाठ करने वाला D.ब्राह्मण 4.यज्ञ का निरीक्षण करने वाला
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सही विकल्प: A
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- निम्न को सही सुमेलित करें
सूची 1 सूची 2 A.ऋग्वेद 1.संगीतमय स्तोत्र B.यजुर्वेद 2.स्तोत्र एवं कर्मकाण्ड C.सामवेद 3.तन्त्र -मन्त्र एवं वशीकरण D.अथर्ववेद 4.स्तोत्र एवं प्रार्थनाएं
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NA
सही विकल्प: A
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- निम्नलिखित में से कौन-सा/से लक्षण ऋग्वेद के अनुसार धर्म के स्वरूप को वर्णित करता/करते है/हैं?
1. ऋग्वेद के धर्म को प्रकृतिवादी बहूदेववाद कहा जा सकता है।
2. ऋग्वेद के धर्म और ईरानी अवेस्ता के विचारों में आश्चर्यजनक समानताएं हैं।
3. वैदिक यज्ञ,पुरोहित के,जिसे यजमान कहा जाता था,घर में किए जाते थे।
4. वैदिक यज्ञ दो प्रकार के थे -वे जो गृहस्थ द्वारा किए जाते थे और वे जिनके लिए कर्मकाण्ड के विशेषज्ञों की आवश्यकता होती थी।
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सही विकल्प: C
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- ऋग्वेद के सम्बन्ध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा एक सही नहीं है?
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सही विकल्प: D
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