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भारत की पूर्वाभिमुखी नीति की 1990 के दशक के प्रारम्भिक वर्षों में उस समय संकल्पना की गई थी जब भारत अन्तर्राष्ट्रीय भू-सामरिक परिवेश में उत्तर-शीतयुद्धकालीन विभाजक परिवर्तनों के साथ समायोजन की प्रक्रिया में था। पूर्वाभिमुखी नीति
1. उत्तर-शीतयुद्धकालीन नई विश्व व्यवस्था की ऐतिहासिक अनिवार्यताओं तथा समाकालीन बाध्यताओं दोनों को दर्शाती है।
2. विस्तृत एशिया-प्रशान्त प्रतिवेश में भारत की सहक्रियाओं के इष्टतमीकरण का प्रयास करती है।
3. एशिया-प्रशान्त फोरम की आसियान, पूर्व एशिया शिखर-वार्ता तथा बिस्मटेक तथा अन्य संस्थाओं में भारत की भागीदारी में परिणमित हुई है।
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