मुख्य पृष्ठ » सामान्य हिन्दी » अपठित गधांश » प्रश्न

Direction: नीचे दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। कुछ शब्दों को मोटे अक्षरों में मुद्रित किया गया है, जिससे आपको कुछ प्रश्नों के उत्तर देने में सहायता मिलेगी। दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त का चयन कीजिए।

यह उस जमाने की बात है जब बी.ए. की पढ़ाई का बहुत महत्व था और विरले ही ग्रेजुएट हो पाते थे। सर्वदयाल भी ग्रेजुएट होना चाहते थे। उनके माता-पिता की इतनी हैसियत न थी कि कालेज के खर्च सह सकें। उनके मामा एक ऊंचे पद पर नियुक्त थे। उन्होंने खर्च देना स्वीकार । किया, परंतु यह भी जोड़ दिया-"देखो, रुपया लहू बहाकर मिलता है। मैं वृद्ध हूं, जान मारकर चार पैसे कमाता हूँ। लाहौर जा रहे हो, वहां पग-पग पर व्याधियां हैं, कोई चिमट न जाए। व्यसनों से बचकर डिग्री लेने का यत्न करो। यदि मुझे कोई ऐसा-वैसा समाचार मिला, तो खर्च भेजना बंद कर दूगा।" सर्वदयाल ने वृद्ध मामा की बात का पूरा-पूरा ध्यान रखा, और अपने आचार-विचार से न केवल उनकी शिकायत का ही अवसर नहीं दिया, बल्कि उनकी आंख की पुतली भी बन गए। परिणाम यह हुआ कि मामा ने सुशील भानजे को पहले से ज्यादा रुपये भेजने शुरू कर दिए। इससे सर्वदयाल का उत्साह बढ़ा। पहले सात पैसे की जुराबें पहनते थे, अब पांच आने की पहनने लगे । पहले मलमल के रूमाल रखते थे, अब एटोनिया के रखने लगे। दिन को पढ़ने और रात को जागने से सिर में कभी-कभी पीड़ा होने लगती थी, कारण यह कि दूध के लिए पैसे न थे। परंतु अब जब मामा ने खर्च की डोरी ढीली छोड़ दी, तो घी-दूध दोनों की तंगी न रही। परंतु इन सबके होते हुए भी सर्वदयाल । उन व्यसनों से बचे रहे, जो शहर के विद्यार्थियों में प्राय: पाये जाते हैं।

इसी प्रकार चार वर्ष बीत गए। सर्वाद्याल बी.ए. की डिग्री लेकर घर आ गए। जब तक पढ़ते थे, सैकड़ों नौकरियां दिखाई देती थीं। परंतु पास हुए, तो कोई ठिकाना न दीख पड़ा। वह घबरा गए। जिस प्रकार यात्री मीलों चल-चल कर स्टेशन पर पहुंचे, परंतु रेलगाड़ी में स्थान न मिले। उस समय उसकी जो दुर्दशा होती है, ठीक वही सर्वदयाल की थी। उनके पिता पंडित शंकरदत पुराने जमाने के आदमी थे। उनका विचार था कि बेटा अंग्रेजी बोलता है, पतलून पहनता है, नेकटाई लगाता है, तार तक पढ़ लेता है, इसे नौकरी न मिलेगी, तो और किसे मिलेगी? परंतु जब बहुत दिन गुजर गए और सर्वदयाल को कोई आजीविका न मिली, तो उनका धीरज छूट गया। बेटे से बोले-'’अब तू कुछ नौकरी भी करेगा या नहीं? मिडिल पास लौंडे रुपयों से घर भर देते हैं। एक तू है कि पढ़ते-पढ़ते बाल सफेद हो गए, परंतु हाथ पर हाथ धरे बैठा है।' सर्वदयाल के कलेजे में मानों किसी ने तीर-सा मार दिया। सिर झुका कर बोले-'नौकरियां तो बहुत मिलती हैं, परंतु वेतन बहुत कम मिलता है, इसलिए देख रहा हूँ कि कोई अच्छा अवसर हाथ आ जाय, तो करूं।' शंकरदत्त ने उत्तर दिया-‘‘यह तो ठीक है, परंतु जब तक अच्छी न मिले, मामूली ही कर लो। जब अच्छी मिले, इसे छोड़ देना।" सर्वदयाल चुप हो गए, वे उत्तर न दे सके। शंकरदत्त, पूजापाठ करने वाले आदमी, इस बात को क्या समझें कि कभी ग्रेजुएट भी साधारण नौकरी कर सकता है?

  1. मामा ने खुश होकर क्या किया ?
    1. सर्वदयाल को और मेहनत करने की नसीहत दी
    2. कहा, अच्छे नंबर लाओगे तो नौकरी पर लगवा दूंगा
    3. पहले से ज्यादा रुपय भेजने शुरू कर दिए
    4. कहा मेरे पैसा का मोल समझो
    5. इनमें से कोई नहीं
सही विकल्प: C

सर्वदयाल के मामा उससे खुश होकर उसे पहले से ज्यादा रुपय भेजने शुरू कर दिए थे।



एडमिन के अप्रूवल के बाद आपका कमेंट दिखाया जायेगा.